Sunday, July 09, 2017

कहानी

कहानी अपनी अधूरी सही खत्म होने को हे
आँखे सुखी पानी नही हे मगर रोने को हे
तमाशा देखने वाला तमाशा देखता है
ये सफर अधूरा ही सही खत्म होने को हे।।

अभी तो दिन था मेरा फिर क्यों लगता है शाम होने को हे
प्यार मिला ही नहीं कभी बस नफरते ढोने को हे
मर जाने के बाद भूल जाओगे मुझे पता है
मगर ये शाम आज यादे सँजोने को हे
ये सफर अधूरा ही सही खत्म होने को हे।।

1 comment:

SARKER SAADY AHMED said...

very well written and edited, please do kindly check my blogspot, leave a comment and follow for more updates

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