कहानी अपनी अधूरी सही खत्म होने को हे
आँखे सुखी पानी नही हे मगर रोने को हे
तमाशा देखने वाला तमाशा देखता है
ये सफर अधूरा ही सही खत्म होने को हे।।
अभी तो दिन था मेरा फिर क्यों लगता है शाम होने को हे
प्यार मिला ही नहीं कभी बस नफरते ढोने को हे
मर जाने के बाद भूल जाओगे मुझे पता है
मगर ये शाम आज यादे सँजोने को हे
ये सफर अधूरा ही सही खत्म होने को हे।।
1 comment:
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